चैतन्य महाप्रभु कौन थे?

चैतन्य महाप्रभु कौन थे?
श्री चैतन्य महाप्रभु (1486-1533) एक भारतीय भक्ति संत थे जिन्हें उनके अनुयायियों और विभिन्न ग्रंथों द्वारा राधा और कृष्ण के संयुक्त अवतार माना जाता है।

प्रारंभिक जीवन
श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फरवरी 1486 को नबद्वीप (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनका जन्म नाम विश्वंभर मिश्र था। उनके पिता जगन्नाथ मिश्र एक विद्वान ब्राह्मण थे और उनकी माता शची देवी एक गृहिणी थीं।

शिक्षा और विवाह
विश्वंभर ने बचपन से ही संस्कृत और वेदों का अध्ययन शुरू कर दिया था। वे एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने जल्द ही सभी शास्त्रों में महारत हासिल कर ली। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह लक्ष्मीप्रिया से हुआ।

सन्यास
18 वर्ष की आयु में, विश्वंभर ने सन्यास ले लिया और अपना नाम चैतन्य महाप्रभु रख लिया। उन्होंने गौड़ीय वैष्णववाद की स्थापना की, जो भक्ति आंदोलन की एक शाखा है।

भक्ति आंदोलन
भक्ति आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन था जो 12वीं शताब्दी में भारत में शुरू हुआ था। इस आंदोलन ने भक्ति या ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति पर जोर दिया।

गौड़ीय वैष्णववाद
गौड़ीय वैष्णववाद भक्ति आंदोलन की एक शाखा है जो कृष्ण की पूजा पर केंद्रित है। चैतन्य महाप्रभु गौड़ीय वैष्णववाद के संस्थापक थे।

हरिनाम संकीर्तन
चैतन्य महाप्रभु ने हरिनाम संकीर्तन की शुरुआत की, जो भगवान कृष्ण के नामों का सामूहिक जप और नृत्य है।

यात्राएं
चैतन्य महाप्रभु ने पूरे भारत की यात्रा की, हरिनाम संकीर्तन का प्रचार किया। उन्होंने कई लोगों को कृष्ण की भक्ति में परिवर्तित किया।

विरासत
चैतन्य महाप्रभु को भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण संतों में से एक माना जाता है। उन्होंने गौड़ीय वैष्णववाद की स्थापना की, जो आज भी एक प्रमुख हिंदू संप्रदाय है।

मृत्यु
चैतन्य महाप्रभु का निधन 1533 में पुरी, भारत में हुआ था।